तुम आओ तो साथ चले
ऐसे कोई बात नही
मैं रोज अकेला चलता हूँ
हर शाम मेरी गहराती है
बाहर भी और अंदर भी
मैं दीपक रोज जलाता हूँ
बाहर भी और अंदर भी
तुम आजाओ तो रोशन हो
बाहर भी और अंदर भी
ऐसे कोई बात नही
मैं दीपक रोज जलता हूँ
हर सुबह मेरी तन्हाई की
रोज शिकायत करती है
वो सूखी है वो निष्ठुर है
वो रात उठाये फिरती है
वो दिन में दिन सी देती है
तुम आओ तो देखू तो
सुबह मेरी क्या कहती है
ऐसे कोई बात नही
हर शाम मेरी गहराती है
हर सुबह मेरी उठ जाती है
मैं यू भी चलता रहता हूँ
तुम आओ तो साथ चले
ऐसे कोई बात नही
मैं यू भी चलता रहता हूँ
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